shahil khan

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छोटे छोटे सवाल –१४

और एक क्षण के लिए जैसे सब फिर किसी गहरे सोच में डूब गए। असिस्टैंट टीचर्स की पोस्ट के उम्मीदवारों को तो जैसे अपने भविष्य का पता था मगर हिन्दी के लेक्चररशिप के उम्मीदवार गहरे असमंजस में थे। श्रोत्रिय बराबर वही सोचे जा रहा था कि आज अगर वह सिगरेट न पीता तो क्या बिगड़ जाता? बड़ी गलती हुई। कभी-कभी उसे यह भी खयाल आता था कि पता नहीं चाचा वकील साहब के यहाँ गए भी होंगे या नहीं। कहीं यहाँ तक आना ही अकारथ न जाए।

सलेक्शन कमेटी (अध्याय-2) इंटरव्यू खत्म हो चुके थे, मगर उस कमरे में गहमागहमी थी। अलग-अलग स्वरों में दस-बारह आवाजें एक-दूसरे पर प्रस्थापित होने की कोशिश कर रही थीं। खड़ी बोली एक तो यूं ही खड़ी होती है, फिर अपने उद्गम-स्थान ज़िला बिजनौर में वह जरा स्वाभाविक रूप में चलती है। इसलिए साधारण-सी बहस एक छोटे-मोटे बलवे का मजा दे रही थी। आखिर लाला हरीचन्द से न रहा गया। उन्होंने मेज पर एक छोटा-सा घूँसा मारकर कहा, "भय्यो ! जरा सोच्चो तो। बरोब्बर के कमरे में सारे मास्टर लोग बैठे हैं। कोई सुनेगा तो क्या कहवैगा ?"

मैनेजिंग-कमेटी के सारे सदस्य इंटरव्यू-कमेटी के भी सदस्य थे। चुनांचे प्रिंसिपल के कमरे से बड़ी मेज़ निकलवा दी गई थी ताकि तेरह कुरसियाँ और एक छोटी-सी मेज उसमें आ सके। एक अतिरिक्त कुरसी उम्मीदवार के बैठने के लिए रखी गई थी जो उस छोटी-सी मेज के बिलकुल सामने थी। मेज़ के बीच में कमेटी के प्रेसीडेंट लाला हरीचन्द, दाहिनी ओर वाइस प्रेसीडेंट चौधरी नत्थूसिंह और बाईं ओर सेक्रेटरी श्री गनेशीलाल बैठे थे। सेक्रेटरी की बराबर में एक बिना हत्थे की कुरसी पर ज्वाइंट-सेक्रेटरी गुलजारीमल और वाइस-प्रेसीडेंट के बाजू में कमरे के बाहर पड़ा हुआ एक स्टूल उठाकर मास्टर उत्तमचन्द बैठे हुए थे।

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